“खतरा! खतरा! खतरा!”

एक चुटकुला सुनिये। एक पार्क था जहाँ बहुत सारे लोग दोपहर की धूप सेंकने या पेड़ की छाँव लेने आते थे। छोटे बच्चे सहित बड़े बच्चे सहित परिवार, मित्र-मैत्रिणें, अकेले रहते लोग, पालतू-अपालतू जानवर। बच्चे-बड़े घास पर खुले घूमते, जहाँ जगह मिले बैठते, कुछ देर सो लेते…. एक दिन पार्क में जगह जगह लाऊडस्पीकर लग गये, जिन पर

“खतरा! खतरा! खतरा!”

की चेतावनी दिन भर चलती। पहले पहले लोगों ने नज़रंदाज़ किया। मगर चेतावनी चलती चली गई। लोगों में भय फैलने लगा। किस चीज़ का खतरा है? बचाव कैसे करें? लोग खतरे का स्त्रोत ढ़ूँढने लगे। ऐसी कोई एक चीज़ दिख न पाई जो पहले से अलग थी। मगर चेतावनी चलती गई, “खतरा! खतरा! खतरा!” धीरे धीरे लोग एक दूसरे को देखकर शक करने लगे, कहीं खतरा इनसे तो नहीं? कुछ लोग बच्चों का हाथ थामे रहते। कई लोगों में झगड़े भी हुए – किसी को किसी की नाक खतरनाक लगी, किसी को किसी की पोशाख पर शक हुआ, किसी को दूसरे की बोली पसंद नहीं आयी….. लाऊडस्पीकर पर अब भी “खतरा! खतरा! खतरा!” किसी ने कहा कि जानवरों को अंदर आने मत दो। कुछ ने खुद ही डर के मारे पार्क आना छोड़ दिया। ऐसा जब कुछ दिन चला, तो लोगों का मनोबल बहुत कम होता गया।

फिर उन्हें रहस्य पता चला – खतरा दरअसल वह लाऊडस्पीकर ही था।

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